भारत और श्रीलंका के बीच चूना पत्थरों का एक टीला बना हुआ है, जिसे लेकर लगातार बहस होती आई है. पौराणिक मान्यता के मुताबिक ये राम सेतु है, जिसे वानर सेना ने श्रीलंका तक पहुंचने के लिए तैयार किया था. लगभग 48 किलोमीटर लंबे इस पुल की हकीकत जानने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) इसपर खास रिसर्च करने जा रहा है.
क्या रामायण माइथोलॉजी नहीं, बल्कि सच्चाई है?
क्या उस काल में वाकई में वानर सेना ने राम के कहने पर सीता तक पहुंचने के लिए समुद्र पर पुल बना दिया था? ये कई सवाल हैं, जिसे लेकर खुद ASI भी उत्सुक है. समुद्र में चूना पत्थरों का एक पुलनुमा स्ट्रक्टचर भी मिल चुका है, जिसे लेकर यही कयास लगते रहे. अब खुद ASI इसकी पड़ताल के लिए समुद्र के नीचे शोध करने वाला है. इसके केंद्रीय एडवायजरी बोर्ड ने सीएसआईआर-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी (NIO) के एक प्रस्ताव को मंजूरी दी है. इसके तहत ये शोध होने वाला है.
पुल के निर्माण की उम्र पता लगाने की कोशिश
टाइम्स ऑफ इंडिया में इस बारे में आई रिपोर्ट के अनुसार रेडियोमैट्रिक और थर्मोल्यूमिनेसेंस (TL) डेटिंग के जरिए समझने की कोशिश होगी कि पुल कब बना. इसके साथ ये जानने का भी प्रयास होगा कि इस पुल का निर्माण कैसे हुआ. बता दें कि रेडियोमैट्रिक डेटिंग वो तरीका है, जिससे किसी चीज की उम्र का पता लगाने के लिए उसमें पाए जाने वाले रेडियोएक्टिव तत्व और उनकी अशुद्धियां देखी जाती हैं.
पहले हो चुका है बवाल
वैसे इससे पहले ASI ने साल 2007 में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा था कि समुद्र में भारत से श्रीलंका की ओर जो पत्थर की श्रृंखला मिली है, उसका किसी माइथोलॉजी से जुड़ा कोई प्रमाण नहीं मिला. सेतु मानव निर्मित नहीं, बल्कि प्राकृतिक तौर पर बना हुआ है. बाद में इसे लेकर काफी हंगामा हुआ, जिसके बाद संस्थान ने अपनी बात वापस ले ली. अब इसी श्रृंखला के बारे में सच जानने के लिए ये रिसर्च होगी.
खास जहाज करेगा शोध
शोध के लिए सिंधु संकल्प या सिंधु साधना नाम के जहाजों का इस्तेमाल हो सकता है. ये समुद्री जहाज पानी की सतह पर ही नहीं चलते, बल्कि इनकी खासियत है कि ये सतह के लगभग 40 मीटर नीचे जाकर समुद्र से किसी चीज के नमूने ले सकते हैं. यही कारण है कि शोध में इनका उपयोग प्रस्तावित है.
कहते हैं आदम का सेतु
तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्वी तट पर स्थित पंबन द्वीप और श्रीलंका के उत्तर-पश्चिमी तट पर स्थित मन्नार द्वीप के बीच ये पुल बना हुआ है. इसे आदम का सेतु भी कहते हैं. लेकिन यहां ये समझते चलें कि ASI ने शोध केवल लोगों की तसल्ली के लिए ही इतना लंबा-चौड़ा शोध करने की बात नहीं सोची, बल्कि इसके पीछे सेतुसमुद्रम परियोजना को लेकर सोच है. इस परियोजना का प्रस्ताव 1860 में भारत में काम कर रहे ब्रिटिश कमांडर एडी टेलर ने रखा था. बाद में लगभग 130 सालों बाद इसपर दोबारा बात हुई.
ram setu पौराणिक मान्यता के अनुसार वानर सेना ने राम के कहने पर सीता तक पहुंचने के लिए समुद्र पर पुल बना दिया था
क्या है सेतुसमुद्रम परियोजना
इस परियोजना के तहत भारत से श्रीलंका के बीच नौपरिवहन मार्ग तैयार करने की बात है. समुद्र में वहां का पानी छिछला है, जहां राम सेतु बना हुआ है. इसके कारण जहाजों को वहां से आने-जाने में परेशानी होती है. अगर इसी रास्ते में नौपरिवहन मार्ग बनाया जा सके तो दोनों देशों के बीच आवागमन में काफी समय और ईंधन बचेगा. परियोजना में लगभग 83 किलोमीटर लंबा एक गहरा जल मार्ग खोदा जाएगा जिसके द्वारा पाक जलडमरुमध्य को मन्नार की खाड़ी से जोड़ दिया जाएगा.
क्यों बना हुआ है डर
हालांकि इसमें पेंच ये है कि मार्ग बनाने के लिए समुद्र के भीतर खुदाई करनी होगी. इससे राम सेतु को नुकसान पहुंच सकता है. यही कारण है कि इस परियोजना का विरोध हो रहा है. दूसरी ओर पर्यावरण प्रेमी भी समुद्र के प्राकृतिक स्ट्रक्चर को नुकसान पहुंचने की आशंका देखते हुए इसका विरोध कर रहे हैं. मछुआरों को आशंका है कि सेतुसमुद्रम प्रोजेक्ट के शुरु होने से उनके मछली मारने की गतिविधियां समित हो जाएंगी और मछलियों की संख्या भी कम हो जाएगी. वैसे ये लगभग ढाई हजार करोड़ का प्रोजेक्ट होगा, जिसके बाद दोनों देशों का व्यापार ज्यादा आसान और सस्ता हो जाएगा.